मूढ़ा उद्योग बना गढ़मुक्तेश्वर की पहचान












मूढ़ा उद्योग बना गढ़मुक्तेश्वर की पहचान

हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को पौराणिक तीर्थस्थल गढ़मुक्तेश्वर में आयोजित कार्तिक माह गंगा स्नान मेला स्थल का निरीक्षण किया और निरीक्षण के दौरान गढ़मुक्तेश्वर की पहचान बने मूढ़ा को देखकर मूढ़ा की गुणवत्ता की प्रशंसा की और आश्वासन दिया कि सरकार मूढ़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक कदम उठाएगी।

जनपद हापुड़ के कस्बा गढ़‌मुक्तेश्वर का पौराणिक महत्व तो है ही साथ ही यह उत्तर प्रदेश के मुख्य तीर्थस्थल के रूप में भी जाना जाता है। उत्तरांचल राज्य के गठन के बाद हरिद्वार उत्तरांचल में चला गया तो उत्तर प्रदेश सरकार ने गढ़मुक्तेश्वर का हरिद्वार की तर्ज पर विकास करने का निर्णय लिया और इस दिशा में कार्य भी प्रगति पर है, परन्तु गढ़मुक्तेश्वर में तेजी से पनप रहे मूढ़ा उद्योग के कारण इसकी एक अलग पहचान बनी है। मूढ़ा उद्योग सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी का साधन वन गया है। गढ़मुक्तेश्वर में बने सुंदर व बेहद आकर्षक मूढ़े धनाद्य व मध्यमवर्गीय परिवारों की कोठी के लान व बरामदों की शान बने हैं। गढ़मुक्तेश्वर में बने मूढ़े, बान, चटाइयां और खस के पर्दे तो देशभर में प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक रविवार, में अमावस्या और पूर्णिमा को बृजघाट गंगातट पर स्रान हेतु विभिन्न प्रांतों आने वाले श्रद्धालु गढ़ के मूढ़े साथ ले जाना नहीं भूलते। गढ़मुक्तेश्वर में गंगा किनारे के रेतीले मैदान में जिसे खादर कहा जाता है, अपार M प्राकृतिक सम्पदा है, जिसमें मुख्य रूप से झुंड की पैदावार होती है। झुंड के पक जाने पर उसे काट लिया जाता है। इसे साफ कर उससे फूंस, सेंटे, सरकंडा का पोरा और मूंज को अलग अलग कर दिया जाता है। बान एक प्रकार की महीन रस्सी है जिसका उपयोग चारपाई बुनने, छप्पर बांधने तथा सुंदर व कलात्मक मूढ़े तैयार करने में किया जाता है। मूढ़ा तैयार करने के लिए सरकंडों को साफ कर उन्हें आवश्यकतानुसार विभिन्न लंबाइयों में काट लेते हैं फिर बान की मदद से सरकंडों को विभिन्न आकृतियों में बांध दिया जाता है। मूढ़े को अधिक आकर्षक टिकाऊ बनाने के लिए उसके निचले हिस्से में साइकिल के पुराने टायर तथा ऊपरी भाग में रंगीन रेक्सीन या चमड़ा चढ़ा दिया जाता है। इसे पालिश से चमकदार कर देते हैं। इस प्रकार अनेक प्रकार व आकृतियों में तैयार मूढ़े को कुर्सी मूढ़ा, करछा मूढ़ा, बच्चों की कुर्सी, मुढ़िया आदि नाम से पुकारते हैं। अब तो बच्चों के लिए सरकंडों से आकर्षक अल्मारियां भी बनने लगी हैं, जिन्हें बुजुर्ग जन्मदिन पर बच्चों को उपहारस्वरूप देने में गर्व अनुभव करते हैं। दिल्ली-मुरादाबाद राजमार्ग पर स्थित गढ़मुक्तेश्वर व बृजघाट के मध्य सड़क किनारे बनी अस्थायी सैकड़ों मूढ़ों की दुकानें राहगीरों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। कार्तिक मास पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए खासतौर पर इन दुकानों को संवारा गया है। मूढ़ा उद्योग में दो दर्जन परिवार लगे हैं। उन्होंने बताया कि शिक्षा के अभाव में उनके बच्चे मूढ़ा तैयार करने में जुट जाते हैं और जवान होने तक इस उद्योग में पूरी तरह निपुण हो जाते हैं, परन्तु धन् के अभाव में उनमें तैयार माल को रोकने की क्षमता नहीं है। परिणामस्वरूप उन्हें अपना माल बिचौलियों के हाथों सस्ता बेच देना पड़ता है। क्षेत्र के बिचौलिए खूब फल-फूल रहे हैं। लोगों का कहना है कि यदि सरकार मूढ़ा उद्योग से जुड़े लोगों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराए तो, मूढ़ों का निर्यात कर विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है।”

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