“एकादशी 5 जून की देर रात्रि 2 बजकर 16 मिनट से शुरु होकर 7 जून को सूर्योदय पूर्व 4 बजकर 48 मिनट तक”

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हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा ने बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी जिसे निर्जला एकादशी अथवा भीमसेनी एकादशी भी कहते है का पर्व 06 जून शुक्रवार को मनाया जाएगा तथा व्रत का पारण अगले दिन 7 जून को सुबह सूर्योदय के बाद द्वादशी तिथि में होगा। श्री नीलकंठ महादेव मंदिर, रेलवे रोड में बैठक कर महासभा विद्वानों ने अनेक धर्मग्रंथों के आधार पर विचार-विमर्श कर निर्णय दिया कि निर्णय सिंधु में एकादशी व्रत के 18 भेद बताएं गए है। इस बाऱ एकादशी तिथि 5 जून की देर रात्रि 2 बजकर 16 मिनट से शुरु होकर 7 जून को सूर्योदय पूर्व 4 बजकर 48 मिनट तक है अर्थात 06 जून को सूर्योदय से सूर्यास्त तक एकादशी तिथि है। स्पष्ट है कि 7 जून को सूर्योदय के समय एकादशी तिथि नहीं है। अतः एकादशी तिथि की शुद्ध वृद्धि नहीं मानी जा सकती।
वैष्णव परम्परा का पालन करने वाले कुछ लोगों का मानना है कि एकादशी व द्वादशी दोनों ही 60 घटी से अधिक है। अतः दोनों की वृद्धि माना जाए। महासभा ने कहा इस आधार पर भी धर्मग्रंथों में स्पष्ट लिखा है- प्रथमेऽहनि सम्पूर्णा व्याप्याहोरात्रसंयुता। द्वादश्यां च तथा तात दृश्यते पुनरेव च।। पूर्वा कार्या गृहस्थैश्च यतिभिश्चोत्तरा विभो।। इति स्कान्दोक्तेः। यथा स्कन्दपुराण में कहा है- हे तात, पहले दिन सम्पूर्ण अहोरात्रयुक्त व्यापिनी एकादशी हो फिर द्वादशी में भी एकादशी हो तो गृहस्थगण (सकाम ) पूर्वा एवं संन्यासीगण (निष्काम) उत्तरा करे एक अन्य उदाहरण देते हुए विद्वानों ने कहा -द्वादशीमात्रवृद्धौ तु शुद्धायां पूर्वैव। न चेदेकादशी विष्णोर्द्वादशी परतः स्थिता। उपोष्यैकादशी तत्र यदीच्छेत्परमं पदम्। द्वादशीमात्रवृद्धौ तु शुद्धाविद्धे व्यवस्थिते। शुद्धा पूर्वोत्तरा विद्धा स्मार्तनिर्णय ईदृशः ।।’ इति माधवोक्तेश्च। मदनरत्नेऽप्येवम्। अर्थात नारद का कथन है- द्वादशीमात्र वृद्धि में तो शुद्धा में पूर्वा ही ले। द्वादशी पर में स्थित हो तो परमपद इच्छुक विष्णु की एकादशी दिन में और पर द्वादशी हो तो उसमें उपवास न करे और द्वादशी मात्र की वृद्धि में तो शुद्धा और विद्धा की व्यवस्था में पूर्वा शुद्धा होती है। उत्तरा विद्धा की होती है। इस प्रकार का स्मार्तनिर्णय है। यह माधव ने कहा है तथा मदनरत्न में भी यही बात कही है।
महासभा अध्यक्ष ज्योतिर्विद पंडित के0 सी0 पाण्डेय ने बताया कि स्कन्द पुराण में एकादशी व्रत की सबसे सरल व्याख्या के अनुसार यदि एकादशी तिथि 2 दिन पड़े तो स्मार्त अर्थात गृहस्थ लोग पहले दिन और वैष्णव अर्थात साधु संन्यासी लोग अगले दिन व्रत करें। उन्होंने कहा कि पुराणों में स्पष्ट किया गया है कि सकाम व्रत रखने वाले को पहले दिन तथा निष्काम व्रत रखने वाले को अगले दिन व्रत करना चाहिए। वर्तमान में गृहस्थ जीवन यापन करने वाले तो स्मार्त है ही साथ साथ अनेक संत परम्परा का पालन करने वाले भी पूर्ण वैष्णव नहीं है। उन्हें भी स्मार्त ही मानना चाहिए। अतः निर्जला एकादशी 06 जून शुक्रवार को ही है। इसमें कोई संशय नहीं शुद्ध वैष्णव संतजन अपने व्रत परम्परा का निर्वहन करें। निर्जला एकादशी व्रत के दिन स्नान दान के साथ साथ ॐ नमो नारायणा मंत्र जप करना चाहिए, रात्रि जागरण करें और यदि संभव हो तो विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी करना चाहिए। बैठक में परामर्श विद्वान पंडित ओमप्रकाश पोखरियाल,व्रत पर्व विधिज्ञा अनिशा सोनी पाण्डेय, मंत्री देवी प्रसाद तिवारी व पंडित गौरव कौशिक, समन्वयक पंडित अजय पाण्डेय, कोषाध्यक्ष पंडित मित्र प्रसाद काफ्ले, प्रवक्ता डॉ0 करुण शर्मा, पंडित जगदंम्बा शर्मा, पंडित शैलेन्द्र मिश्रा शास्त्री, पंडित आशुतोष नंदन द्विवेदी, पंडित अमर प्रकाश पाण्डेय,पंडित आशीष पोखरियाल, पंडित शैलेन्द्र अवस्थी, पंडित आदित्य भारद्वाज आदि सम्मिलित रहे।

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