बैकुंठ चतुर्दशी दीपदान व गंगा स्नान का समय व मुहूर्त जानें










बैकुंठ चतुर्दशी दीपदान व गंगा स्नान का समय व मुहूर्त जानें
हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा तक चलने वाले पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन बैकुंठ चतुर्दशी व उसके बाद पूर्णिमा गंगा स्नान होता है अपने पूर्वजों विशेष रूप से एक वर्ष के अंदर मृत्यु को प्राप्त हुए अपने परिजनों व अन्य सम्बन्धियों के आत्मा की शान्ति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए गढ़गंगा में चतुर्दशी की सायंकाल के बाद लाखों लोग गंगातट पर दीपदान करते करेंगे.भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा के अध्यक्ष पंडित के0 सी0 पाण्डेय (काशी वाले ) ने बताया कि इस बार कार्तिक बैकुंठ चतुर्दशी की शुरुआत पूर्णिमा से दो दिन पहले 25 नवम्बर शनिवार को शाम 5.22 बजे होगा धर्मग्रंथो में प्रदोषकाल व निशीथकाल युक्त कार्तिक बैकुंठ चतुर्दशी को ही पूजन व दीपदान का महत्व बताया गया है जो शनिवार को ही है रविवार को दोपहर 3.53 बजे ही चतुर्दशी समाप्त हो जायेगा इसी कारण शनिवार को ही दीपदान का मुख्य पर्व मनाया जाएगा क्योकी रविवार को सूर्यास्त के समय या इसके बाद चतुर्दशी नहीं होने से दीपदान संभव नहीं हो सकेगा।
रविवार 26 नवम्बर को दोपहर 3.53 पर पूर्णिमा तिथि लग जायेगी सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा तिथि लग जाने से इसी दिन पूर्णिमा व्रत रखा जायेगा इसके साथ ही मुख्य स्नान प्रारम्भ हो जायेगा जो 27 नवम्बर सोमवार को अपरान्ह 2.46 तक स्नान-दान करना अत्यंत शुभ फलदायक रहेगा, श्रद्धांलु सांयकाल तक स्नान कर सकते है. महासभा उपाध्यक्ष पंडित ब्रजेश कौशिक (मुख्य अर्चक श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर ) ने गढ़गंगा में दीपदान व स्नान के विषय में पौराणिक कथा का वर्णन करते हुए बताया कि महाभारत के युद्ध में करोड़ों योद्धाओं की मृत्यु होने के कारण जिसमें पांडवों के सगे सम्बन्धी भी शामिल थे उनका मन बहुत दुखी व व्याकुल हो गया था तब भगवान श्री कृष्ण उनको गढ़ लेकर आये और पांच दिनोंतक व्रत करने के बाद दीपदान व स्नान किया था ऐसी मान्यता है कि इससे सभी को मोक्ष प्राप्त हो गया उसके बाद पांडवों का व्याकुल मन शांत हो गया था तभी से ये प्रचलन में है अतः अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए तिल के तेल का दीपक जलाकर गंगा में प्रवाहित करें आकाशदीप भी अवश्य जलाना चाहिए दीपदान करते समय अपने नाम गोत्र के साथ जिस व्यक्ति जैसे माता – पिता या या सम्बन्धी के मोक्ष के लिए कर रहे है उसका नाम, गोत्र व सम्बन्ध का नाम अवश्य ले, एक दीपक भीष्म के नाम तथा अन्य ऋषि आदि के नाम से भी दीपक अवश्य जलाये तथा तुलसी, पीपल, मंदिर, गौशाला तथा अपने द्वार पर भी दीपक जलाना चाहिए साथ में यथाशक्ति पितरों के निमित्त दान भी करें.गढ़ गंगा में दीपदान के साथ साथ पुराणों में राजस्थान के पुष्कर, कुरुक्षेत्र, मथुरा तथा वाराणसी में भी कार्तिक स्नान -दान करने से करोङो गुणा फल बताया गया है।
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