हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): दान व धर्म-कर्म को अक्षय करने वाला अत्यंत शुभ फलदायी अक्षय नवमी जिसे आँवला नवमी भी कहा जाता है 10 नवम्बर रविवार को है। भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा की व्रत पर्व विधिज्ञा अनिशा सोनी पाण्डेय ने बताया कि इस दिन द्वापर युग का आरम्भ हुआ था। यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष जिसे धात्री भी कहते है का पूजन किया जाता है। पूजन तथा दान करने से सुख, समृद्धि के साथ संतान को भी शुभ फल मिलता है तथा निःसंतान को संतान प्राप्त होता है। इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि घर में स्नान करें तो जल में आंवला का रस मिलाकर स्नान करना चाहिए। पश्चात भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी के साथ आंवले के वृक्ष की भी पंचोपचार अथवा शोडषपचार पूजन आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर पूरब या उत्तर की ओर मुख करके करें
पूजन समय “ऊँ धात्र्यै नम:” मंत्र का जप करते रहे तथा निम्न मंत्रो को पढ़ते हुए आंवले के तने की 7 बार परिक्रमा करते हुए कलावा लपेटें-
“दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोSस्तु ते।।”
( 108 बार कच्चासूत भी बाँधने की परम्परा है)
पूजन के बाद निम्न मंत्र को पढ़ते हुए आंवले के वृक्ष की प्रदक्षिणा करें-
“यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।”
उसके आंवले के वृक्ष के नीचे ही भोजन बनाकर पूजन के बाद
सर्व प्रथम ब्राह्मण को खिलाएं उसके बाद स्वयं भी सपरिवार भोजन करना चाहिए यदि आँवले के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर से भोजन बनाकर ले जाना चाहिए आंवला नवमी के दिन किया गया जप, तप व दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता पौराणिक मान्यतानुसार आंवले की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के असुओं से हुई है, अक्षय नवमी के दिन भोजन में खीर, पूड़ी के साथ आंवले से बने मिठाई, चटनी अवश्य ले इस दिन किसी भी रूप में आंवला निश्चितरुप से खाना चाहिए.अक्षय नवमी के दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नामक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड (कोहड़ा,सीताफल) की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण आज के दिन कुष्माण्ड का दान करने से अत्यंत शुभ फल प्राप्त होता है आज के दिन विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके यथाशक्ति सामान व दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दें और निम्न प्रार्थना करें-
कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
पितरों के निमित्त यथा शक्ति कम्बल,उनी वस्त्र आदि भी सुयोग्य ब्राह्मण को देना चाहिये।
आज के दिन झूठ, निंदा या किसी भी पापकर्म बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए नहीं तो वह कभी समाप्त नहीं होता.
आवला नवमी पूजन शुभ मुहूर्त-
सुबह 7.05 से दोपहर 12.20 तकस्थिर लग्न, चर,लाभ, अमृत चौघड़िया
अपरान्ह 1.20 से 2.45 तक
शुभ, स्थिर लग्न
आज के दिन स्नान व दान का विशेष महत्व है।
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