Saturday, January 25, 2025
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वैलनेस अस्पताल का लाइसेंस निलंबित होने के बाद भी मरीजों का पीछे से हो रहा प्रवेश? सीधे शासन करें करवाई








वैलनेस अस्पताल का लाइसेंस निलंबित होने के बाद भी मरीजों का पीछे से हो रहा प्रवेश? सीधे शासन करें करवाई

हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): हापुड़ की दिल्ली रोड पर स्थित वैलनेस अस्पताल ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े किए हैं। अस्पताल का ऑपरेशन थिएटर, लेबर रूम और वार्ड सील होने के बाद उसका लाइसेंस भी निलंबित किया जा चुका है लेकिन इसके बावजूद भी मरीज को पीछे के दरवाजे से अस्पताल में घुसाया जा रहा है। चंद रुपयों के लालच में अधिकारी अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं जबकि अस्पताल का स्टाफ लगातार लापरवाही पे लापरवाही बरत रहा है।

24 अक्टूबर का मामला:

ज्ञात हो कि मामला 24 अक्टूबर का है जब सिखेड़ा मुरादाबाद गांव के रहने वाले जुल्फिकार की पत्नी गुड़िया को प्रसव पीड़ा हुई। परिजन महिला को हापुड़ कोतवाली के सामने स्थित वेलनेस अस्पताल लेकर पहुंचे। डॉक्टर अनस और डॉक्टर प्रियंका ने सामान्य प्रसव की बात कही जहां महिला के प्रसव के बाद उसका रक्तस्राव नहीं रुका। इसके बाद परिजनों को खून लाने के लिए अन्य अस्पताल भेज दिया। इसी बीच अस्पताल ने परिजनों को बताए बिना ही महिला की बच्चेदानी निकाल दी जिसके बाद उसकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई। अस्पताल स्टाफ ने सास बानो से कागजातों पर हस्ताक्षर करा लिए और मरीज को मेरठ के लिए रेफर कर दिया। जब परिजन खून लेकर वापस पहुंचे तो उन्हें असलियत का पता चला जिसके बाद गुड़िया की हालत बिगड़ती चली गई। उसे अन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया। महिला फिलहाल जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है।

शासन ने मामले में संज्ञान, अन्य जनपद का आधिकारी करें जांच:

महिला इस दौरान जिंदगी की लड़ाई लड़ रही है लेकिन अस्पताल अभी भी अपनी लापरवाही से बाज नहीं आ रहा। स्वास्थ्य विभाग की कार्य शैली भी इस दौरान अच्छी नहीं रही। दरअसल मामला 24 अक्टूबर का है जिसके बाद मामले की शिकायत की गई लेकिन दिसंबर में जाकर स्वास्थ्य विभाग ने मामले में कार्रवाई करना लाजमी समझा। ऐसे में शासन को मामले में संज्ञान लेकर गंभीरता दिखाते हुए जांच करानी चाहिए और यह जांच अन्य जनपद के अधिकारी के हाथों होनी चाहिए।

भटकते रहे परिजन, किसान संगठन आया आगे:

जब परिजनों की किसी ने न सुनी तो ऐसे में भारतीय किसान यूनियन किसान सभा के पदाधिकारियों को आगे आना पड़ा। जब संगठन ने धरना प्रदर्शन किया तो अधिकारियों को होश आया और उन्होंने आनन-फानन में अस्पताल का ओटी सील कर खानापूर्ति की लेकिन जब किसान संगठन ने फिर से स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ हंगामा किया तो जाकर लेबर रूम और कई वार्डों को सील किया। अधिकारियों ने काफी लचीले पन से कार्रवाई की।

अस्पताल की लापरवाही आई सामने:

अधिकारियों का तो यह भी कहना है की प्रथम दृष्ट्या अस्पताल की लापरवाही सामने आई है। अब न जाने क्यों स्वास्थ्य विभाग की टीम आखिरकार अस्पताल पर कड़ा एक्शन लेने से हिचक रही है। फिलहाल अस्पताल का लाइसेंस भी निलंबित कर दिया गया है लेकिन अभी तक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। फिलहाल तीमारदारों व मरीजों को अस्पताल के पीछे से प्रवेश कराया जा रहा है। कैमरा देखकर अस्पताल स्टाफ ने लोगों को बाहर ही खड़ा कर दिया। मामले की जांच शासन को करनी चाहिए और मामले में लिप्त लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।

EHAPUR NEWS के कुछ सवाल:

अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली सवालों के कटघरे में है। ऐसे में कई सवाल खड़े होते हैं:

– 24 अक्टूबर के मामले में दिसंबर में करवाई क्यों?

– पहले ओटी ही सील क्यों हुआ?

– लाइसेंस निरस्त करने में इतना समय क्यों लगा?

– पीछे से प्रवेश देने का राज क्या है?

– अधिकारियों का लापरवाही भरा रवैया आखिर क्यों?

– परिजनों की शिकायत पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

– किसान संगठन के हंगामे के बाद ही क्यों जागा स्वास्थ्य विभाग?

मामले में भ्रष्टाचार की बू आ रही है। ई-हापुड़ नन्यूज़ इन सभी सवालों का जवाब स्वास्थ्य विभाग से तलाश रही है। ऐसा लगता है कि अस्पताल के चिकित्सकों को संरक्षण दिया जा रहा है।

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