
पितरों के मोक्ष के लिए आज सायं 5.27 बजे से होगा दीपदान
हापुड़, सीमन (ehapurnews.com):गढ़मुक्तेश्वर गंगा मेला के मुख्य पर्व बैकुंठ चतुर्दशी पर आज 4 नवम्बर मंगलवार को सायंकाल से पितरों के निमित्त दीपदान किया जाएगा। भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा अध्यक्ष ज्योतिर्विद पंडित के0 सी0 पाण्डेय काशी वाले ने बताया कि चतुर्दशी तिथि 4 नवम्बर को तड़के 2.06 बजे से प्रारम्भ होकर रात्रि 10.36 तक रहेगा। सुबह गंगा स्नान के बाद भगवान शिव का पूजन करने के बाद भगवान विष्णु का पूजन तथा सूर्यास्त प्रदोष काल 5.27 बजे से सर्वार्थसिद्धि योग, अमृतसिद्धि योग, सिद्धि योग के विशेष संगम में दीपदान व आकाशदीप पूर्वजों (पितरों) के मोक्ष के लिए किया जाएगा।
आज गीता पाठ, विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना चाहिए तथा ॐ नमो नारायणा या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जप भी निरंतर करना चाहिए गृहस्थों को आज के साथ साथ ब्राह्मण भोजन कराकर दान भी देना चाहिए इससे पितर तृप्त होते है। स्नान के बाद भगवान विष्णु की भी पूजा करना चाहिए। उन्हें ऋतुफल विशेषरूप से आँवला, केला, सिंहाड़ा के साथ तुलसीदल अवश्य चढ़ाना चाहिए। सायंकाल में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए मंत्र-“दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च। नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम्”॥ कहते हुए आकाशदीप को छोड़ना चाहिए। इसे ही प्रमुख दीपदान कहते है। दीपदान में शिव के लिए सफ़ेद, विष्णु के लिए पीले तथा पितरों के लिए सफ़ेद रंग का बत्ती होना चाहिए। बत्ती अथवा दीपक की संख्या 14 श्रेष्ठ है। वैसे भाव व सामर्थ्य नुसार 7, 11,51, 101, 365 की संख्या में भी दीपदान कर सकते है जो इस प्रकार दीपदान करता है उन्हें पुर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। परिवार में सुख, समृद्धि, शान्ति होती है साथ श्री लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है चतुर्दशी तिथि को रात्रि जागरण कर भजन कीर्तन भी करना चाहिए पदम् पुराण, अग्नि पुराण, महाभारत व भविष्य पुराण के अनुसार युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान कृष्ण ने दीपदान की महिमा बताया है। भगवान कृष्ण के कहने पर ही धर्मराज युधिष्ठिर ने भाइयों के साथ युद्ध में मारे गए अपने पितरों के मोक्ष के लिए गढ़मुक्तेश्वर में कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी से कार्तिक पूर्णिमा तक स्नान, हवन व दीपदान करने से सभी को मोक्ष प्राप्त हुआ था। अतः द्वापर युग से ही गढ़मुक्तेश्वर में दीपदान विशेष रूप से एक वर्ष में मृत्यु को प्राप्त पितरों को आकाशदीप व दीपदान परम्परा चली आ रही है। पितरों को आकाश दीप या दीपदान देते समय मंत्र –
नमः पितृभ्यः प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे । नमो यमाय रुद्राय कान्तारपतये नमः ॥ कहते हुए आकाशदीप को छोड़े व दीपक जल में प्रवाहित करें ब्राह्मण भोजन के साथ आसन, कंबल, चौकी, स्वर्ण, वस्त्र आदि के दान का विशेष महत्व है।
कमल डोसा प्लाजा लेकर आए हैं नए अंदाज़ में वहीं पुराना स्वाद: 7017570838
























