
छठपूजा व्रत आज से नहाय खाय के साथ प्रारम्भ होकर चार दिन तक चलेगा
हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): सूर्य उपासना व लोकआस्था का सबसे बड़ा पर्व छठपूजा व्रत आज 25 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ प्रारम्भ होकर 4 दिन तक चलेगा जिसमें 36 घंटे का कठिन व्रत रखकर श्रद्धालु भगवान सूर्य व छठी मैया का पूजन करेंगे। भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा अध्यक्ष पं0 के0 सी0 पाण्डेय काशी वाले ने बताया कि चार दिन तक चलने वाला यह पर्व आज पहले दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को नहाय खाय के साथ जिसमें व्रत करने वाले कद्दू की सब्जी, चने की दाल के साथ अरवा चावल सेंधा नमक से बना हुआ भोजन ग्रहण करेंगे तथा परम्परानुसार अगले दिन कल 26 अक्टूबर पंचमी तिथि को सूर्योदय से सूर्यास्त तक बिना अन्न जल के व्रत करके गुड़ का खीर, पूड़ी आदि छठी मैया के गीत गाते हुए बनाया जायेगा। साथ ही प्रसाद में फल व मिष्ठान चढ़ाकर सूर्यास्त के बाद पूजन करके बिना नमक का बना हुआ प्रसाद एकांत में ग्रहण करने के बाद जिसे खरना भी कहते है। व्रती द्वारा लगभग 36 घंटे बिना अन्न- जल ग्रहण के सबसे कठिन व्रत की शुरुआत होगा जिसमें जमीन पर ही सोना होता है।
षष्ठी तिथि को सुबह से ही घर की महिलाओं द्वारा ठेकुआ, गुझिया, चावल के लड्डू आदि पकवान बनाया जाता है तथा गीत गाते हुए सायंकाल से पूर्व ही गंगा नदी घाट अथवा किसी भी नदी या तालाब के किनारे पहुंचकर सूप में नारियल, मूली, हल्दी, केला, गन्ना, सिन्हाड़ा, अन्य मौसमी फल मिष्ठान के द्वारा मुख्य पूजन किया जाता है जो 27 अक्टूबर कार्तिक कृष्ण षष्ठी तिथि को है। ज़ब सूर्यास्त से पूर्व जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी यानि डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। अगले दिन सप्तमी तिथि को सूर्योदय से पूर्व पुनः जल में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजन पूर्ण कर व्रत का पारण किया जाएगा। व्रती को निरंतर सूर्य षष्ठी पूजन के इस मंत्र -वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:। सुखदायै मोक्षदायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।। कल्याणं च जयं देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।। का जप करते रहना चाहिए तथा सूर्य को अर्घ्य देते समय “ॐ सूर्याय नमः’, ॐ आदित्याय नम: तथा ॐ घृणि: सूर्याय नमः’ मंत्र का जप करना चाहिए व्रती द्वारा मुख्य पूजन 27 अक्टूबर सोमवार को किया जाएगा तथा सूर्यास्त सायं 5.33 से पहले भगवान सूर्य को दूध मिश्रित जल से अर्घ्य दिया जाएगा 28 अक्टूबर मंगलवार को सुबह 6.32 पर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजन पूर्ण किया जाएगा, षष्ठी तिथि वृद्धि होने से सुबह 8 बजे तक रहेगा अतः व्रत का पारण सप्तमी तिथि सुबह 8 बजे लगने के बाद ही करना चाहिए पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्री राम व माता सीता ने इस व्रत पूजन को किया था तथा द्वापर युग में युधिष्ठिर द्वारा जुए में राजपाठ हार जाने पर पुनः प्राप्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण के कहने पर द्रोपदी ने इस व्रत को किया था, कर्ण द्वारा भी इस पूजन करने का वर्णन मिलता है इस व्रत को करने से संतान, समृद्धि, सुख, वैभव प्राप्त होता है वर्तमान सनातन धर्म परम्परा का यह एकमात्र सबसे कठिन व्रत है जिसमें अस्तगामी सूर्य प्रत्यूषा तथा सूर्योदय अर्थात उषा दोनों समय में पूजनकर अर्घ्य दिया जाता है जिसको करने से समस्त इच्छा मनोकामना पूर्ण होती है।




























