
गढ़मुक्तेश्वर कस्बे का पौराणिक महत्व
हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): गढ़मुक्तेश्वर एक ऐसा पैराणिक ऐतिहासिक कस्बा है जिसकी श्रृंखला चिरकाल से स्थापित है। दिल्ली से सौ कि.मी. दूर दिल्ली-लखनऊ राजमार्ग पर स्थित इस कस्बे का पौराणिक नाम शिवबल्लभ है! यहां गणों की हुई मुक्ति के समय इस तीर्थ का नाम गणमुक्तीश्वर पड़ गया। यह मेला यहां की प्राचीन परम्परा और भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। गंगा तट पर लाखों तीर्थ यात्रियों की आस्था का अनुमान उस विशाल जन समूह को देखकर लगाया जा सकता है जो प्रत्येक वर्ष सैकड़ों हजारों मील दूर से रंग-बिरंगे परिधानों में गंगा मैय्या की जय बोलते हुए लाखों नर-नारी गंगा तट पर पहुंचते हैं। प्राचीन व ऐतिहासिक गंगा मंदिर मुक्तेश्वर महादेव मंदिर से पूर्व में दो फ्लांग की दूरी पर एक ऊंचे टीले पर स्थित है किसी समय गंगा इसी मंदिर के निकट से बहती थी। मंदिर तक पहुंचने के लिए सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं यदि सबसे ऊपर की सीढ़ी से नीचे की किसी सीढ़ी पर पत्थर फेंकते हैं तो आज भी ऐसा लगता है कि मानों पत्थर गंगाजल में जाकर गिरा है। ऊपर की सीढ़ी से पत्थर जितनी अधिक दूरी की सीढ़ी पर गिरेगा पानी में उसके गिरने की आवाज अधिक तेज सुनाई देगी। इस प्राचीन गंगा मंदिर में एक ऐसा चमत्कारी पत्थर भी है जिसकी शाखाएं फूटती हैं और मानवाकृति उभरती है। गधे, खच्चरों का बड़े पैमानों पर व्यापार इसी दौरान ही होता है। दूर-दूर के व्यापारी गधे, खच्चरों की खरीद-बेच के लिए गढ़गंगा मेले में पहुंचते हैं। एक अनुमान के अनुसार मेले में प्रत्येक वर्ष चालीस पचास हजार गधे-खच्चरों की खरीद-बेच होती है।
पौराणिक तीर्थस्थल गढ़मुक्तेश्वर जनपद हापुड़ मे जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर गंगा किनारे बसा एक कस्बा है, जहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान मेला लगता है। इस वर्ष 30 अक्टूबर से 7 नवम्बर तक गढ़ गंगा मेला लगेगा और कार्तिक पूर्णिमा स्नान 5 नवम्बर का है। गढ़ गंगा मेले में 30-35 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। मेले में पहुंचने वाले तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा, उपभोक्ता सामग्री की उपलब्धता के लिए प्रशासन से सभी सम्भव व आवश्यक कदम उठाए है।
राधेश्याम ज्वेलर्स एंड संस लेकर आए हैं लेटेस्ट ब्राइडल कलेक्शन: 8954000066
























