रबी फसलों मे सन्तुलित उर्वरक प्रयोग से ही उत्पादन में वृद्धि
हापुड, सूवि(ehapurnews.com): रबी मौसम की विभिन्न फसलों की बुवाई हेतु सन्तुलित उर्वरकों के प्रयोग पर क्षेत्र भम्रण ओर विभागीय परिचर्चाओं के दौरान कुल तथ्य प्रकाश में आये है। किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन हेतु नाईट्रोजन, फास्फोरस एंव पोटाश का अनुपात 4:2:1 होना चाहिए। वर्तमान में अनुपात 28:9:1 है यह अनुपात प्रदर्शित है कि प्रदेश के किसान खेती के लिये बुवाई के समय अधिकाशतः डी०ए०पी० का ही प्रयोग कर रहे है। इससे उनकी फसल को पोटाश की मात्रा ही मिल पा रही है। जबकि एन०पी० के० का प्रयोग करने पर सन्तुलित रूप से तीनों महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की उपलब्धता हो जायेगी। कृषक बन्धुओं को अवगत कराये जाने की आवश्यकता है कि मुख्य पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु एन०पी० के० (12:32:16, 10:26:26:) जैसे मिश्रित उर्वरकों के प्रयोग से फसलों में सन्तुलित मात्रा में पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है, जिसका सकारात्मक प्रभाव फसल उत्पादन व उपज की गुणवत्ता वृद्धि पर पडेगा।
रबी सीजन की विभिन्न फसलो जैसे चना, मटर, मसूर, गेहूँ, सरसों तथा आलू की बुवाई के समय फास्फेटिक उर्वरकों की आवश्यकता पडती है। वर्तमान में फास्फेटिक उर्वरकों के कई विकल्प किसानों के लिये उपलब्ध है, जैसे डी०ए०पी०, एन०पी०के०, एस०एस०पी० ।
डी०ए०पी० के दो पोषक तत्व नत्रजन एंव फास्फोरस उपलब्ध होते है। एन०पी०के के विभिन्न ग्रेड के कामप्लेक्स फर्टिलाईजर्स में सन्तुलित रूप से नत्रजन, फास्फोरस एंव पोटेशियम तीनों अत्यन्त महत्वपूर्ण प्राथिमिक पोषक तत्वों की उपलब्धता हो जाती है। आलू जैसे महत्वपूर्ण कामिर्शियल फसल के लिये सन्तुलित उर्वरक, विशेष रूप से पोटाश का उत्पादन एवं गुणवत्ता हेतु महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस प्रकार फास्फोरस के दूसरे महत्वपूर्ण उर्वरक एस०एस०पी० जिसमें 16 प्रतिशत फारफोरस एंव 11 प्रतिशत सल्फर के साथ कैल्शियम की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। यह उर्वरक सरसों जैसे तिलहनी फसलों के उत्पादन हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सरसों के तेल के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हेतु सल्फर की आवश्यकता होती है। दलहनी फसलो के लिये भी एन०पी०के०, एवं एस०एस०पी० जैसे उर्वरक डी०ए०पी० की तुलना में Cost Effective व सन्तुलित है, जानकारी के अभाव में प्रायः किसान डी०ए०पी० के प्रयोग के लिये आतुर होते है। असन्तुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से लागत में वृद्धि होती है तथा उर्वरक क्षमता में कभी के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या में वृद्धि होती है।
रबी फसलों में सन्तुलित उर्वरक उपयोग करने से फसल उत्पादकता व गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ अनेक फायदे जैसे- गेहूँ के दाने मोटे एंव चमकदार, सरसों में तेल की मात्रा में वृद्धि, लहसुन में गन्ध व गुणवत्ता में वृद्धि के साथ ही फसलों में कीट व रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
अतः कृपया मृद्धा परीक्षण करवानें और फसल की आवश्यकता के अनुरूप सन्तुलित उर्वरकों का प्रयोग करने के लिये अपने जनपद के कृषकों को प्रेरित करने का कष्ट करें।
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