हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): सनातन धर्म में भगवान का प्रिय कार्तिक मास, पावन गंगा और पवित्र गढ़मुक्ततेश्वर स्थान एक दूसरे के पूरक है। भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा के अध्यक्ष पंडित के0 सी0 पाण्डेय ने बताया कि मान्यता है कि महाभारत ग्रंथ में वर्णित संसार का एकमात्र स्थान जहाँ द्वापर युग में परिजनों के स्नान, यज्ञ, अनुष्ठान द्वारा एक साथ असंख्य मृत्यु प्राप्त लोगों को मोक्ष प्राप्त हुआ। इसी पौराणिक परम्परा के साथ आज भी प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी से कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा स्नान कर यज्ञ धर्म कर्म दान के द्वारा पुण्य प्राप्त कर अपने पितरों के मोक्ष हेतु अनुष्ठान कर दीपदान किया जाता है जो इस बाऱ 09 नवम्बर, शनिवार अष्टमी तिथि से प्रारम्भ होकर 15 नवम्बर शुक्रवार पूर्णिमा तक चलेगा 14 नवम्बर को बैकुंठ चतुर्दशी के दिन पितरों के निमित्त लाखों लोगों द्वारा विशेष रुप से दीपदान किया जाएगा। गढ़मुक्तेश्वर स्थान व इसके महात्म्य का वर्णन स्कन्द पुराण, भागवत पुराण, शिव महापुराण व महाभारत आदि ग्रंथों में मिलता है। स्कन्द पुराण व शिव पुराण के अनुसार तपस्या कर रहे महर्षि दूर्वासा का उपहास भगवान शिव के गणों ने किया था जिससे क्रोधित होकर दूर्वासा जी ने उन्हें पिशाच होने का श्राप दे दिया अपने गलती का अहसास होने तथा श्राप से व्यथित व्याकुल गणों द्वारा महर्षि दूर्वासा से बारम्बार क्षमा प्रार्थना करने पर उन्होंने उस समय के नाम शिववल्लभ स्थान पर जाकर भगवान शिव की तपस्या करने के लिए कहा मान्यतानुसार कार्तिक पूर्णिमा को ही दर्शन देकर भगवान शिव ने गणों को श्राप से मुक्ति दी इसीलिए इस स्थान का नाम गणमुक्तेश्वर पड़ा जो कालांतर में गढ़मुक्तेश्वर कहा जाने लगा। अतः इस दिन सभी गंगा स्नान कर अपने पितरों के मुक्ति की प्रार्थना करते है। गंगा स्नान के बाद पितरों के निमित्त ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात् मंत्र ‘ का जप करें
काशी, कुरुक्षेत्र, प्रयागराज, अयोध्या, हरिद्वार की तरह गढ़मुक्तेश्वर का भी पौराणिक धार्मिक महत्त्व है कार्तिक मास में उत्तर भारत का सबसे बड़ा राजकीय धार्मिक मेला यहाँ लगता है जो 8 नवम्बर से 15 नवम्बर तक चलेगा पितरों को जल देते समय मंत्र देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।। बोलना चाहिए तथा पितरों के निमित्त ब्राह्मण भोजन के साथ यथाशक्ति दान अवश्य कराना चाहिए मान्यतानुसार इस समयकाल में मुक्तेश्वर महादेव के सामने अथवा प्रांगण में पितरों का तर्पण व पिंडदान करने से गया श्राद्ध के जितना ही फल प्राप्त होता है पितृदोष से मुक्ति के लिए भी मंत्र जप, यज्ञ अनुष्ठान उपाय आदि के लिए यह विशेष फलदायक समय है
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