
‘आई लव मोहम्मद’ विवाद: क्रोध नहीं, सब्र और हिकमत का समय
हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): प्यारे भाइयों और बहनों, आज हमारा देश एक बार फिर एक ऐसे विवाद के दौर से गुजर रहा है जो हमारी भावनाओं को आहत करता है। ‘आई लव मोहम्मद’ अभियान को लेकर उठे विवाद ने समुदाय में आक्रोश पैदा किया है। लेकिन इस कठिन घड़ी में हमें यह याद रखना होगा कि हमारे प्यारे नबी मुहम्मद ने हमें क्या सिखाया था। क्या उन्होंने हमें गुस्से में सड़कों पर उतरने की शिक्षा दी थी? या उन्होंने हमें धैर्य, संयम और बुद्धिमत्ता का पाठ पढ़ाया था? पवित्र कुरान में अल्लाह तआला फरमाते हैं: “और निःसंदेह तुम महान चरित्र पर हो” (सूरह अल-कलम: 4)। पैगंबर मुहम्मद का जीवन सब्र (धैर्य) और हिलम (सहनशीलता) का आदर्श उदाहरण है।
अल्लाह तआला कुरान में फरमाते हैं: “भलाई और बुराई बराबर नहीं हैं। तुम बुराई को उस तरीके से दूर करो जो सबसे अच्छा हो, तो तुम देखोगे कि तुम्हारे और जिसके बीच दुश्मनी थी, वह ऐसा हो जाएगा जैसे वह गहरा दोस्त हो” (सूरह फुस्सिलत: 34)। यह आयत हमें सिखाती है कि बुराई का जवाब बुराई से नहीं, बल्कि अच्छाई से देना चाहिए। सड़कों पर उतरकर हिंसा करना, संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, यह पैगंबर की शिक्षाओं के विपरीत है। हदीस में आता है कि पैगंबर ने फरमाया: “ताकतवर वह नहीं है जो (कुश्ती में) दूसरों को पछाड़ दे, बल्कि ताकतवर वह है जो गुस्से के समय अपने आप पर काबू रखे” (सहीह बुखारी और मुस्लिम)। एक और हदीस में आता है: “अल्लाह नरम और कोमल है और नरमी को पसंद करता है, और वह नरमी पर वह चीज़ प्रदान करता है जो सख्ती पर प्रदान नहीं करता” (सहीह मुस्लिम)।
भाइयों और बहनों, जब हम सड़कों पर उतरते हैं, तो हम क्या हासिल करते हैं? क्या हम नबी के सम्मान की रक्षा करते हैं या उनकी शिक्षाओं को भूल जाते हैं? हिंसक प्रदर्शन से हमारी छवि खराब होती है। दुनिया इस्लाम को हिंसा से जोड़ने लगती है, जबकि इस्लाम का अर्थ ही शांति है। इस से निर्दोष लोग पीड़ित होते हैं, सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है, व्यापार ठप होता है और आम लोगों की परेशानी बढती है। कानूनी समस्याएं आती है जिस से गिरफ्तारियां, मुकदमे, परिवारों का नुकसान होता है। इन सब के कारण हमारा संदेश हिंसा की खबरों में खो जाता है। पैगंबर की सच्ची मोहब्बत यह है कि हम उनकी सुन्नत पर चलें। हमें चाहिए कि कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करें जैसे अदालत, याचिकाएं, शांतिपूर्ण वार्ता – ये वे रास्ते हैं जो एक सभ्य समाज में उपलब्ध हैं। अपने चरित्र से इस्लाम को पेश करें। जैसा कुरान कहता है, “दीन (धर्म) में कोई जबरदस्ती नहीं” (सूरह अल-बकरह: 256)। लोगों को हमारे अच्छे चरित्र से इस्लाम की ओर आकर्षित होना चाहिए। लोगों को पैगंबर की सच्ची शिक्षाओं से परिचित कराएं, न कि हिंसा से। अल्लाह से दुआ करें कि वह हमारे समाज में शांति और समझदारी लाए। प्यारे मुस्लिम भाइयों और बहनों, यह समय परीक्षा का है। अल्लाह हमें परख रहा है कि क्या हम सच में अपने नबी की शिक्षाओं का पालन करते हैं या सिर्फ नाम के मुसलमान हैं। कुरान कहता है: “और सब्र करो, निःसंदेह अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है” (सूरह अल-बकरह: 153)।
आइए, हम शांति, धैर्य और बुद्धिमत्ता का रास्ता अपनाएं। यही असली “आई लव मोहम्मद” है – उनकी शिक्षाओं पर अमल करना, न कि सड़कों पर नारे लगाना। हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित समाज दें, जहां इस्लाम की सच्ची तस्वीर पेश की जा सके।
अल्लाह हम सभी को सही रास्ते पर चलने की तौफीक दे। आमीन।
मोहम्मद सादिक
पीएचडी जामिया मिलिया इस्लामिया
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