वैदिक भक्ति, प्रवचन एवं एवं आध्यात्मिक विमर्श का अद्भुत संगम – आर्य समाज

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वैदिक भक्ति, प्रवचन एवं एवं आध्यात्मिक विमर्श का अद्भुत संगम – आर्य समाज

हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): हापुड़ – आर्य समाज हापुड़ में आज 24 फरवरी 2025 दिन सोमवार प्रातः कालीन सत्संग में आयोजित “ज्ञान ज्योति पर्व” के अंतर्गत वैदिक भक्ति और आध्यात्मिक चिंतन का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस पावन अवसर पर यज्ञ के यजमान दंपत्ति के रूप में श्रीमान एवं श्रीमती डॉ. अनुभा दुहेया, श्रीमती एवं श्री अजय गोयल तथा श्रीमती एवं श्री सचिन गर्ग ने अपने परिवार सहित वैदिक आहुति अर्पित की और धार्मिक उत्साह का परिचय दिया।

भक्ति सत्र में प्रसिद्ध भजनोपदेशक विवेक पथिक जी ने अपनी सुमधुर वाणी में “मानव तू अगर चाहे, दुनिया को हरा देना”, “दुनिया में कोई चाहे कितना महान हो, तेरी अपर महिमा, कैसे बयान हो, कुछ बोलने से पहले, गूंगी जुबान हो”, “प्रभु नाम भज ले, सुबह शाम जप ले, यूँ ही सारी उमर चली जाए ना”, “अंगिनत प्राणी जगत में, सबका दाता एक है” तथा “कौन कहे तेरी महिमा, कौन कहे तेरी माया” जैसे भजनों का गायन किया। इन भजनों ने श्रद्धालुओं को भक्ति रस से सराबोर कर दिया और उन्हें वैदिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

सत्र के दौरान स्वामी जी ने अपने ओजस्वी प्रवचनों में जन्म-मृत्यु को ईश्वर की इच्छा बताया, जो उसके अद्वितीय अस्तित्व को प्रमाणित करता है। उन्होंने समझाया कि हानि-लाभ, जीवन और यश-अपयश मनुष्य के हाथ में नहीं हैं, बल्कि परमात्मा ही गुरुओं का गुरु है, जो अनादि से अंत तक सृष्टि में विद्यमान है। ईश्वर एक, सर्वव्यापक, चेतन तथा अनाकार है और कर्मफल के आधार पर न्याय करता है। स्वामी जी ने यह भी बताया कि मनुष्य कर्म तीन स्तरों पर करता है—शारीरिक, वाचिक और मानसिक। नास्तिकता को सभी अधर्मों व पापों की जड़ बताया। उन्होंने शरीर से होने वाले हिंसा, चोरी, व्यभिचार जैसे पापों के साथ-साथ वाणी के माध्यम से झूठ, अप्रिय या कठोर बोलना, निंदा-चुगली और मानसिक स्तर पर परिद्रोह, दूसरों की वस्तुओं पर अनुचित लालसा और नास्तिकता को मानव पतन के मुख्य कारणों के रूप में रेखांकित किया।

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