हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): आजकल हापुड़ में तांबे से सोना बनाकर उसके जेवर तैयार करने का धंधा तेजी से अमरबेल की तरह बढ़ रहा है। हापुड़ में इस प्रकार से तैयार किए गए आभूषण देश के कोने-कोने में धड़ल्ले से बिक रहे हैं। उपभोक्ता को अपनी ठगी का उस समय पता चलता है जब वह आभूषण बेचने को निकलता है और उसे बताया जाता है कि यह सोना नहीं तांबा है। सोने के नाम पर तांबे के आभूषण तैयार कर बेचने वालों की हरकत से ईमानदारी से व्यवसाय करने वालों के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई है।
अब देश का शायद ही कोई छोटा-बड़ा शहर बचा हो,जहां हापुड़ में तैयार तांबे के आभूषण सोने में न बिक रहे हों। यहां तक कि नेपाल और गोवा भी इनकी पहुंच से नहीं बचे है। इस कारोबार पर गिने-चुने लोगों को कब्जा है और अब वे पूरे माफिया बन बैठे हैं और इनके नेटवर्क में कई सौ लोग लगे है।
अशुद्ध आभूषण तैयार करने वाले माफियाओं की पहली सीढ़ी वे लोग हैं,जो तांबे की राड लाकर इंहें उपलब्ध कराते हैं और ये राड रेल,रोडवेज या प्राईवेट बसों तथा कारों द्वारा हापुड़ लाई जाती है। माफिया इन कैरियरों को चार रुपए प्रतिकिलों की दर से मेहनताने का भुगतान करके विदा कर देते हैं। उनका यह क्रम प्रतिदिन चलता है। इसके बाद तांबे की राड उन कारीगरों को दी जाती है जो इसे मशीन में डालकर आवश्यकतानुसार महीन कर देते हैं और फिर उस पर नामपात्र का सोना चढ़ाया जाता है। इस धंधे में करीब हजारों कारीगर लगे हैं जो शहर के विभिन्न इलाकों में रहते हैं। तांबे की राड मशीन में डालने से पहले उसे भटठी में गर्म किया जाता है और ये भ_ियां मकानों की छतों पर लगी हैं। जिनमें उठने वाले धुएं के कारण प्रदूषण फैल रहा है। प्रदूषण के कारण आसपास के लोग छतों सपर नहीं सो पाते हैं।
हापुड़ में तांबे से चूडिय़ां,कड़े,ब्रेसलैट,चैन तथा हार व गले के सैट तैयार किए जा रहे है। माफियाओं ने इनकी बिक्री के लिए अपने पास एजेंट पाल रखे हैं,जो तैयार माल देश के दूर-दराज हिस्सों जयपुर,बम्बई,गोवा,कलकत्ता, लखनऊ, इलाहाबाद तथा महाराष्ट्र व गुजरात,उड़ीसा,उत्तर प्रदेश के इलाकों में ले जाते है। एक एजेंट प्रतिदिन औसतन दो हजार रुपए सहज ही कमा लेता है। तांबे से तैयार सोने के जेवर खरीदने वाले व्यवसायी अब हापुड़ भी पहुंचने लगे हैं। जो आलीशान कारों से हापुड़ पहुंचते है और खरीदकर उडऩ छू हो जाते है। एक अनुमान के अनुसार हापुड़ में करीब 50 लाख रुपए प्रतिदिन का माल तैयार होकर धड़ल्ले से बिक रहा है जिस पर राजस्व के रुप में सरकार को कर नहीं मिल रहा है। इस धंधे में लिप्त एजेंट नकदी के मुकाबले सोने के बिस्कुट लाते हैं जिन्हें हापुड़ व आसपास बेचकर दोहरा लाभ कमाते हैं।
अब तो इन माफियाओं के लिए राजस्थान की मंडियां खासतौर पर जयपुर स्वर्ग सिद्ध हो रही है। क्योंकि उत्तर प्रदेश और राजस्थान में तस्करी का सोना धड़ल्ले से पहुंचता है। बताते हैं कि दस ग्राम के सोने के बिस्कुट के मूल्य में 50-100 रुपए तक का अंतर है। बस इसी अंतर का लाभ ये माफिया उठा रहे हैं। एक तो तांबे से तैयार आभूषण सोने के नाम पर बेचकर,दूसरे राजस्थान व अन्य स्थानों से सोने की तस्करी करके दोहरा लाभ कमाने में लगे है।
मजे की बात तो यह है कि सोने के मिलावटी जेवर तैयार करने वाले इन माफियाओं पर किसी भी प्रकार का कोई लाईसैंस नहीं है फिर भी इनका ध्ंाधा खूब चमक रहा है। सरकार इस ओर से आंखें मंूदे है। सोने के नाम पर तांबे के जेवर खरीदकर किसान,मजदूर व ग्रामीण तो ठगे ही जा रहे है,परंतु मध्यम व उच्च वर्ग के लोग भी इस ठगी के शिकार हो रहे है।
कल तक इस धंधे में लिप्त लोगों के घर रोटियों के लाले थे आज वे करोड़ों,अरबों में खेल रहे हैं और आलीशान भवनों में रहते हैं तथा एयर कंडीशन गाडिय़ों में चलते हैं तथा सरकार को टैक्स देने के नाम पर शून्य है।
इस प्रकार से तैयार सोने के नकली जेवर पर हालमार्क लगाया जाता है और फिर 22 कैरट के जेवर बताकर देश के विभिन्न इलाकों में बेचे जाते है।
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